ठग व्यापारी का अंत
किसी छोटे से गाँव में मोहन नाम का एक व्यापारी रहता था। मोहन अनाज तौलने वाले बाँट में चुपके से छेद कर रखता था — ऊपर से पूरा दिखता, पर अंदर से खोखला। गाँव के भोले‐भाले लोग उसकी दुकान से खरीदारी करते, और मोहन हर दिन थोड़ा‐थोड़ा लाभ बढ़ाता।
उसी गाँव में राघव नाम का एक ईमानदार किसान भी था। राघव अपने खेतों के ताज़े चावल गाँव की मंडी में बेचता, और कमाई का छोटा सा हिस्सा विधवा और गरीबों की मदद में खर्च करता। मोहन अक्सर ईमानदार राघव को देखकर मुस्कुराता और सोचता,
“यह सीधा किसान ज़िंदगी भर ग़रीब ही रहेगा, जबकि मैं दिमाग लगाकर जल्दी अमीर बन जाऊँगा ।”
त्योहार का दिन
दिवाली के हफ़्ते गाँव में खरीदारी की हलचल थी। मोहन ने लालच में पड़कर बाँट और भी ख़ाली कर डाला ताकि कम अनाज देकर ज़्यादा पैसा कमा सके। लेकिन उस दिन उसके पास नगर के व्यापार महासंघ के निरीक्षक आ पहुंचे। शिकायत किसी अज्ञात व्यक्ति ने भेजी थी।
निरीक्षक ने तराज़ू जाँचा तो धोखेबाज़ी सामने आ गई। मोहन पर भारी जुर्माना लगा, दुकान सील हुई, और समस्त गाँव में उसकी नाक कट गई। ग्राहकों ने मुँह मोड़ा, आसपास के बाज़ार में भी उसका नाम बदनाम हो गया।
विपत्ति की घड़ी
चंद ही महीनों में मोहन की पूँजी ख़त्म हो गई। किसी ने उधार तक न दिया। भूखा-प्यासा वह राघव के घर पहुंचा और रो पड़ा। राघव ने उसे भोजन दिया और शांत स्वर में कहा,
“मोहन भाई, असली कमाई ग्रहाक का भरोसा है। अगर तुम दूसरों को ठगोगे, तो विश्वास खोकर ख़ुद ही डूब जाओगे।”
राघव ने मोहन को अपने खेतों में ईमानदारी से मेहनत करने का काम दिया। कड़ी मेहनत और सच्चाई का स्वाद चखने के बाद मोहन ने फिर से छोटी सी दुकान खोली—इस बार बिल्कुल ईमानदार। धीरे-धीरे ग्राहकों का भरोसा लौटा और उसका व्यापार फिर से चला, पर अब वह हर रुपये को धन्य मानता था।
शिक्षा / नैतिक संदेश
जो दूसरों को धोखा देता है, वह कभी जीवन में प्रगति नहीं कर पाता। सच्चाई और ईमानदारी ही स्थायी समृद्धि का मार्ग हैं।